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मुक़ाबला-ए-हुस्न | शाही शायरी
muqabla-e-husn

नज़्म

मुक़ाबला-ए-हुस्न

फ़हमीदा रियाज़

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कूल्हों में भँवर जो हैं तो क्या है
सर में भी है जुस्तुजू का जौहर

था पारा-ए-दिल भी ज़ेर-ए-पिस्ताँ
लेकिन मिरा मोल है जो इन पर

घबरा के न यूँ गुरेज़-पा हो
पैमाइश मेरी ख़त्म हो जब

अपना भी कोई उज़्व नापो!