मैं आफ़्ताब पी गया हूँ
साँस और बढ़ गई है
तिश्नगी ही तिश्नगी
तू सर-ज़मीन-ए-इत्र-ओ-नूर से उतर के
आफ़्ताब बन के आ गई
बिलोर का जहाज़
अब्र से परे
रवाँ रवाँ
इधर अँधेरी रात है
शफ़क़ की तेग़-ए-सुर्ख़ उस तरफ़
तमाम आसमाँ
शहाब ही शहाब है
गुलाल ही गुलाल है
सितारा हम-नशीं है
माह हम-नफ़स है
साज़-ए-जाँ-नवाज़ साथ है
गुरेज़-पा सफ़र का
एक एक पल है
जावेदाँ
इलाही ये सफ़र कभी न ख़त्म हो
नज़्म
मुलाक़ात
मख़दूम मुहिउद्दीन