मुझे मालूम है
मेरी तमाम अन-सुनी दस्तकों
बिना पढ़ी चिट्ठियों
मायूस दरख़्वास्तों के एवज़
एक लम्बी ख़ामोशी के बअ'द
वह खटखटाएगा मेरा दर
और मैं
घर पर नहीं मिलूँगा

नज़्म
मुझे मालूम है
सुबोध लाल साक़ी
नज़्म
सुबोध लाल साक़ी
मुझे मालूम है
मेरी तमाम अन-सुनी दस्तकों
बिना पढ़ी चिट्ठियों
मायूस दरख़्वास्तों के एवज़
एक लम्बी ख़ामोशी के बअ'द
वह खटखटाएगा मेरा दर
और मैं
घर पर नहीं मिलूँगा