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मुझे कुछ दैर सोने दो | शाही शायरी
mujhe kuchh dair sone do

नज़्म

मुझे कुछ दैर सोने दो

नाज़ बट

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सुनो जानाँ
मुझे कुछ देर सोना है

और अपनी आँख की पुतली में रक़्साँ तितलियों के लम्स को महसूस करना है
सुनो जानाँ

मैं आँखें बंद करती हूँ
तो उन मख़मूर लम्हों में

तुम्हारे रेशमी एहसास की इक नर्म सी ख़ुशबू
नवाह-ए-जिस्म-ओ-जाँ में फैल जाती है

फ़ज़ा महमेज़ होती है
उसी साअ'त हवा-ए-नीम-शब निर्मल सुरों में गुनगुनाती है

तुम्हारी याद आती है
तो मेरी आँख की पुतली में रक़्साँ तितलियाँ मुझ को सताती हैं

बदन में फैल जाती हैं
सुनो जानाँ

मुझे कुछ देर सोने दो
विसाल-आसार लम्हों का पता देती गुलाबी तितलियों के लम्स को महसूस करने दो

मुझे कुछ देर सोना है
मुझे कुछ देर सोने दो