ये जो फ़स्ल-ए-फ़ुर्क़त-ए-अस्र है
इसे काट भी
ये जो दफ़्तर-ए-ग़म-ए-ज़ीस्त है
इसे बंद कर
इसे बंद कर कि वो बुत-फ़रोश नहीं रहे
जो असीर थे रुख़-ए-दहर के
तिरे रू-ब-रू तिरे चार सू
शब हस्त-ओ-बूद की राह में तिरे हम-क़दम
तिरे आइनों की शिकस्तगी का भरम लिए
कोई और कब है मिरे सिवा
कोई और कब था मिरे बग़ैर
मगर ऐ रहीन-ए-दम-ए-अलस्त
मिरे वाक़िए के मुक़द्दमात से पेशतर
मेरी बंदगी को फ़रोग़ दे
कभी दोपहर के ख़ुमार में
किसी अक्स-ए-मौज-ए-बला में रख
मिरे ख़ाक-ओ-ख़ूँ को निहाल कर
मुझे खोल ताज़ा हवा में रख
नज़्म
मुझे खोल ताज़ा हवा में रख
फर्रुख यार