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मुझे ख़ामोश कर दो | शाही शायरी
mujhe KHamosh kar do

नज़्म

मुझे ख़ामोश कर दो

राशिद आज़र

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बहुत बकने लगा है ये दिल-ए-हसरत-ज़दा अब तो
कहीं ऐसा न हो कुछ राज़ की बातें भी कह जाए

मगर इस मसअले का एक हल ये है
मिरे मुँह खोलते ही तुम

मुझे चुप-शाह के रोज़े की चुपके से क़सम दे कर
ज़बाँ का बुत

मिरे होंटों की मेहराबों में रख दो
और मुझे ख़ामोश कर दो