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मुबारकबाद | शाही शायरी
mubarakbaad

नज़्म

मुबारकबाद

साइमा इसमा

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ज़माने! तहनियत तुझ को
कि फिर मैदान मारा है

मगर अब के जो हारा है
बड़ा ही सख़्त-जाँ निकला

मुक़ाबिल तेरे आने को बहुत तयार फिरता था
लिए हथियार फिरता था

वफ़ा के, ज़र्फ़ के
आँखों में रौशन ख़ुश-गुमानी के

लबों पर खेलती ख़्वाहिश,
सुख़न में नाचती इक हौसला-मंदी

रगों में दौड़ता सय्याल इरादा था
बदन पर ख़्वाब की पहने ज़िरा-बक्तर

जबीं पर बे-नियाज़ी ख़ूद की सूरत टिकाई थी
गिरा के फ़र्श पर इस को

बड़ा अर्सा लगा तुझ को
कि इस काशाना-ए-उम्मीद भी लम्स-ए-ज़मीं चक्खे

फिर इस के ब'अद
कितनी देर तक उस का

अदम तस्लीम-ए-पस्पाई में चिल्लाते हुए रहना...
ज़माने तहनियत तुझ को

कि अब की मर्तबा जिस को पछाड़ा है
बड़ा ही सख़्त-जाँ था वो!!