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मोटर-रिक्शा | शाही शायरी
motor-rickshaw

नज़्म

मोटर-रिक्शा

सरफ़राज़ शाहिद

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बैठ कर एक बार रिक्शे में
फिर न बैठेगा यार रिक्शे में

आज-कल हो रहा है ज़ोरों पर
हुस्न का कारोबार रिक्शे में

दे हसीनों को कार से तश्बीह
कर हमारा शुमार रिक्शे में

आ रहा है मुशाएरे के लिए
शाएर-ए-नाम-दार रिक्शे में

है जहाँ दो का बैठना मुश्किल
ये बिठाते हैं चार रिक्शे में

शाह-राहों पे रोज़ होते हैं
हादसे बे-शुमार रिक्शे में