बारिश अंदर भी बरसाती थी
बारिश बाहर भी बरस गए
उम्र यूँ भी गुज़रती थी
उम्र यूँही गुज़र गए
मैं ने कुछ कहा उस ने कुछ सुना
बात अपनी आई सी हो गई
रात काटे न कटी थी दोस्त मेरी
शुक्र है कि सुब्ह हो गई
ये जो इतना ख़राबा हुआ अपना लोगो
कहते हैं मोहब्बत थी हो गई

नज़्म
मोहब्बत
उरूज जाफ़री