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मोहब्बत नूर है जानाँ | शाही शायरी
mohabbat nur hai jaanan

नज़्म

मोहब्बत नूर है जानाँ

नाज़ बट

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ज़माना इस की ख़्वाहिश में अज़ल से चूर है जानाँ
मोहब्बत नूर है जानाँ

मोहब्बत नूर है जानाँ
रुख़-ए-महताब से रौशन निगार-ए-ख़्वाब से रौशन

नज़र में खुलने वाले सब्ज़ा-ए-शादाब से रौशन
सितारों से कहीं बढ़ कर चमक इस के जिलौ में है

जो आब-ओ-ताब है इस में कहाँ सूरज की ज़ौ में है
ये नख़्ल-ए-इश्क़ पर जैसे वफ़ा का बौर है जानाँ

मोहब्बत नूर है जानाँ
मोहब्बत नूर है जानाँ

ये जिस दिल में उतर जाए उसे मा'मूर कर जाए
सरापा रंग कर जाए तमन्नाओं से भर जाए

ये ऐसा कैफ़ है जो हर क़दम पर ज़िंदगी पुर-नूर करता है
उतर कर रूह में इस के अँधेरे दूर करता है

ये वो एहसास है जो हर घड़ी भरपूर है जानाँ
मोहब्बत नूर है जानाँ

मोहब्बत नूर है जानाँ