पहले वो रंग थी
फिर रूप बनी
रूप से जिस्म में तब्दील हुई
और फिर जिस्म से बिस्तर बन कर
घर के कोने में लगी रहती है
जिस को
कमरे में घटा सन्नाटा
वक़्त-बे-वक़्त उठा लेता है
खोल लेता है बिछा, लेता है
नज़्म
मोहब्बत
निदा फ़ाज़ली
नज़्म
निदा फ़ाज़ली
पहले वो रंग थी
फिर रूप बनी
रूप से जिस्म में तब्दील हुई
और फिर जिस्म से बिस्तर बन कर
घर के कोने में लगी रहती है
जिस को
कमरे में घटा सन्नाटा
वक़्त-बे-वक़्त उठा लेता है
खोल लेता है बिछा, लेता है