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मिरी दुआ है | शाही शायरी
meri dua hai

नज़्म

मिरी दुआ है

जावेद अख़्तर

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ख़ला के गहरे समुंदरों में
अगर कहीं कोई है जज़ीरा

जहाँ कोई साँस ले रहा है
जहाँ कोई दिल धड़क रहा है

जहाँ ज़ेहानत ने इल्म का जाम पी लिया है
जहाँ के बासी

ख़ला के गहरे समुंदरों में
उतारने को हैं अपने बेड़े

तलाश करने कोई जज़ीरा
जहाँ कोई साँस ले रहा है

जहाँ कोई दिल धड़क रहा है
मिरी दुआ है

कि उस जज़ीरे में रहने वालों के जिस्म का रंग
इस जज़ीरे के रहने वालों के जिस्म के जितने रंग हैं

इन से मुख़्तलिफ़ हो
बदन की हैअत भी मुख़्तलिफ़

और शक्ल-ओ-सूरत भी मुख़्तलिफ़ हो
मिरी दुआ है

अगर है उन का भी कोई मज़हब
तो इस जज़ीरे के मज़हबों से वो मुख़्तलिफ़ हो

मिरी दुआ है
कि इस जज़ीरे की सब ज़बानों से मुख़्तलिफ़ हो ज़बान उन की

मिरी दुआ है
ख़ला के गहरे समुंदरों से गुज़र के

इक दिन
इस अजनबी नस्ल के जहाज़ी

ख़लाई बेड़े में
इस जज़ीरे तक आएँ

हम उन के मेज़बाँ हों
हम उन को हैरत से देखते हों

वो पास आ कर
हमें इशारों से ये बताएँ

कि उन से हम इतने मुख़्तलिफ़ हैं
कि उन को लगता है

इस जज़ीरे के रहने वाले
सब एक से हैं

मिरी दुआ है
कि इस जज़ीरे के रहने वाले

उस अजनबी नस्ल के कहे का यक़ीन कर लें