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मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले | शाही शायरी
mere dard ko jo zaban mile

नज़्म

मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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मिरा दर्द नग़मा-ए-बे-सदा
मिरी ज़ात ज़र्रा-ए-बे-निशाँ

मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मुझे अपना नाम-ओ-निशाँ मिले

मेरी ज़ात का जो निशाँ मिले
मुझे राज़-ए-नज़्म-ए-जहाँ मिले

जो मुझे ये राज़-ए-निहाँ मिले
मिरी ख़ामुशी को बयाँ मिले

मुझे काएनात की सरवरी
मुझे दौलत-ए-दो-जहाँ मिले

If Pain Could Speak
My pain, a voiceless song,

my being a nameless mote.
If only my pain could speak,

I'd know who I am.
And if my self could find its essence,

I’d unravel the mystery of this world.
If I could seize this hidden mystery,

my silence would find expression.
Then would I lord it over the universe,

possess all treasures of the two worlds.