मिरा दर्द नग़मा-ए-बे-सदा
मिरी ज़ात ज़र्रा-ए-बे-निशाँ
मेरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मुझे अपना नाम-ओ-निशाँ मिले
मेरी ज़ात का जो निशाँ मिले
मुझे राज़-ए-नज़्म-ए-जहाँ मिले
जो मुझे ये राज़-ए-निहाँ मिले
मिरी ख़ामुशी को बयाँ मिले
मुझे काएनात की सरवरी
मुझे दौलत-ए-दो-जहाँ मिले
If Pain Could Speak
My pain, a voiceless song,
my being a nameless mote.
If only my pain could speak,
I'd know who I am.
And if my self could find its essence,
I’d unravel the mystery of this world.
If I could seize this hidden mystery,
my silence would find expression.
Then would I lord it over the universe,
possess all treasures of the two worlds.
नज़्म
मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़