मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है
कि बाज़ार में देखूँ आम आ रहा है
ग़रीब-ओ-अमीर उस के शैदाई यकसाँ
पसंदीदा-ए-ख़ास-ओ-आम आ रहा है
किसी मुक़तदी को खरीदूँ मैं क्यूँकर
कि जब ख़ुद फलों का इमाम आ रहा है
सब हाथों को फैलाएँ आँखें बिछाएँ
फलों में वो आली मक़ाम आ रहा है
वो चौसा सरोली वो सिंधड़ी वो फ़ज़ली
वो आमों का इक अज़दहाम आ रहा है
है लंगड़ा प लंगड़ाते लंगड़ाते देखो
वो महबूब-ए-मन ख़ुश-ख़िराम आ रहा है
मुझे है ख़ुशी जो हैं दीवाने उस के
'असर' उन में मेरा भी नाम आ रहा है
नज़्म
मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है
शाहीन इक़बाल असर