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मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है | शाही शायरी
mera jazba-e-shauq kaam aa raha hai

नज़्म

मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है

शाहीन इक़बाल असर

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मिरा जज़्बा-ए-शौक़ काम आ रहा है
कि बाज़ार में देखूँ आम आ रहा है

ग़रीब-ओ-अमीर उस के शैदाई यकसाँ
पसंदीदा-ए-ख़ास-ओ-आम आ रहा है

किसी मुक़तदी को खरीदूँ मैं क्यूँकर
कि जब ख़ुद फलों का इमाम आ रहा है

सब हाथों को फैलाएँ आँखें बिछाएँ
फलों में वो आली मक़ाम आ रहा है

वो चौसा सरोली वो सिंधड़ी वो फ़ज़ली
वो आमों का इक अज़दहाम आ रहा है

है लंगड़ा प लंगड़ाते लंगड़ाते देखो
वो महबूब-ए-मन ख़ुश-ख़िराम आ रहा है

मुझे है ख़ुशी जो हैं दीवाने उस के
'असर' उन में मेरा भी नाम आ रहा है