मिरी तलाश मत करो न मुझ को पा सकोगे तुम
जहाँ पहुँच गया हूँ मैं वहाँ न आ सकोगे तुम
तुम्हारे जिस्म ओ जाँ दिल ओ नज़र में हूँ
तुम्हारे साथ साथ ज़िंदगी के
हर सफ़र में हूँ
तुम अपने आप से अभी नहीं हो रू-शनास
ताकि देखते मुझे ख़ुद अपने आप में कभी
मगर तुम अपने आप को न देख पाओगे अभी
अभी न अपने आप से नज़र मिला सकोगे तुम
मिरी तलाश मत करो
न मुझ को पा सकोगे तुम
जहाँ पहुँच गया हूँ मैं
वहाँ न आ सकोगे तुम
रौशनी के सेहर-कार दाएरे
बना रहा हूँ ज़र्रा-ए-हक़ीर से
जो साकिनान-ए-अर्श को मुहीत में लिए हुए
ज़मीं की सम्त हैं रवाँ
रौशनी में गुम हूँ मैं
रौशनी मिरी नुमूद
नज़ारा-ए-तजल्ली-ए-हयात हूँ
ताब किस नज़र में है
तजल्ली-ए-हयात की न ताब ला सकोगे तुम
मिरी तलाश मत करो न मुझ को पा सकोगे तुम
बईद-अज़-क़यास
मावरा-ए-फ़िक्र-ओ-आगही
तमाम काएनात की हदों से पार ज़िंदगी
दानिश ओ ख़िरद की बे-शुमार मंज़िलें
बे-शुमार मंज़िलें मिलीं
फ़ज़ा-ए-बे-ज़माँ ओ बे-मकाँ की जुस्तुजू में गुम
तअय्युन और मक़ाम का असीर
में कभी न था कभी नहीं
अगर तअय्युनात से परे न जा सकोगे तुम
मिरी तलाश मत करो न मुझ को पा सकोगे तुम
मिरी तलाश मत करो न मुझ को पा सकोगे तुम
शबीह-ए-रंग-रूप
इन क़ुयूद से बरी हूँ मैं
ख़याल-ए-ज़ात और तसव्वुर-ए-वजूद से बुलंद हूँ
बताओ इन बुलंदियों तक आज आ सकोगे तुम
ख़ुद अपने आप से कभी नज़र मिला सकोगे तुम
मिरी तलाश मत करो मुझे न पा सकोगे तुम
नज़्म
मेरी तलाश मत करो
नियाज़ हैदर