ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
जाएज़ा लेता हूँ हर मोड़ पे शाइ'र का दिमाग़
हर बदलते हुए मंज़र पे नज़र रखता हूँ
और तारीक सी रातों में जलाता हूँ चराग़
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
झिलमिलाते हुए आँचल में सुकूँ ढूँड चुका
इक तबस्सुम के लिए एक इशारे के लिए
अपने जज़्बात में अंदाज़-ए-जुनूँ ढूँड चुका
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
पर्दा-ए-साज़ में इक गीत छुपाया था कभी
अपने एहसास की पर्वाज़ बढ़ाने के लिए
याद है मध-भरी आँखों को रुलाया था कभी
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
ये झपकती हुई पलकें हैं ये लब ये रुख़्सार
ये तो ज़ुल्फ़ें नहीं सावन की घटाएँ होंगी
हाँ यही तो हैं ख़यालात के रंगीं शहकार
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
मैं ने इक बार ही छेड़ा था मोहब्बत का रबाब
साँस जलने लगी थी जिस्म लरज़ उट्ठा था
मैं ने पीने के लिए सिर्फ़ उँड़ेली थी शराब
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
हुस्न को रहगुज़र-ए-आम पे चलते देखा
एक ही सम्त इनायात के धारे न रहे
मैं ने पानी कई सोतों से उबलते देखा
ज़िंदगी की सभी राहों से गुज़रता हूँ नदीम
मैं ने घुटते हुए कमरे में धुआँ देखा है
तंग गलियों में बनावट की हँसी बिकती है
दूर इक ताक़ पे मिट्टी का दिया जलता है
नज़्म
मेरी शाइ'री
अख़्तर पयामी