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मेरी मोहब्बत चाहती है | शाही शायरी
meri mohabbat chahti hai

नज़्म

मेरी मोहब्बत चाहती है

क़मर जमील

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मेरी मोहब्बत चाहती है मीनारे घर के शिवालों के
कुछ बातें मक्के वालों की कुछ क़िस्से बनारस वालों के

मेरी तमन्ना सूरज बन के चमकती है गुलज़ारों पर
मेरी मोहब्बत साया बन के ठहरती है दिल-दारों पर

रौशनी मेरी बुलंदी बन के चमकी चाँद सितारों में
मैं ने गुलाब की आँखें देखीं अपने घर की बहारों में

मेरे लिए त्यौहार की रातें अब भी दिए जलाती हैं
मेरे लिए हर देस की यादें अब भी नाचने आती हैं