मेरी इक नज़्म जो जन्मी है अभी
ज़ेहन की कोख से रोते रोते
जिस को काग़ज़ पे सुलाया है बड़ी मुश्किल से
हाँ
वही नज़्म मिरी
प्यारी सी भोली-भाली
आओ
आ कर उसे अच्छा सा कोई नाम तो दो
ताकि दुनिया में उसे भी कोई पहचान मिले
नज़्म
मेरी इक नज़्म
मोहसिन आफ़ताब केलापुरी