फैलूँ तो सागर बन जाऊँ
और सिमटूँ तो बूँद
चाहूँ तो वो सरहद छू लूँ
मौत जहाँ घबराए
और गिरूँ तो ख़ुद ही
अपनी नज़रों से गिर जाऊँ
नज़्म
मेरा वजूद
खलील तनवीर
नज़्म
खलील तनवीर
फैलूँ तो सागर बन जाऊँ
और सिमटूँ तो बूँद
चाहूँ तो वो सरहद छू लूँ
मौत जहाँ घबराए
और गिरूँ तो ख़ुद ही
अपनी नज़रों से गिर जाऊँ