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मेरा शहर | शाही शायरी
mera shahr

नज़्म

मेरा शहर

शहाब अख़्तर

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जहाँ मैं रहता हूँ
वहाँ सब रहते हैं

मेरे घर के
क़रीब ही

एक गधा रहता है
जो बड़े ख़ुलूस से मिलता है

वहीं पे
एक लोमड़ी भी रहती है

जिस के हर बोल में मक्कारी है
वहीं पे रहते हैं

कव्वे गिध उल्लू सियार लकड़बग्घे
और

फाड़ खाने वाले शहर भी
अब मैं सोचता हूँ

मैं इन लोगों के बीच रहता हूँ
या ये लोग

मेरे बीच रहते हैं