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मेघा | शाही शायरी
megha

नज़्म

मेघा

उरूज जाफ़री

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जब मेघा आती है
सब को पता चुल जाता है

कभी उस की हँसी से
कभी उस की ख़ुशबू से

कभी कानों के झुमके
कभी आँख का काजल

सब को बता देते हैं
मेघा कहीं क़रीब ही है

उस की हँसी की खनक आज-कल
बड़ी गहरी है

आँचल भी लहराए हैं मगर
कोई जानता नहीं इस सारी रौनक़ से

परे एक दिल है
जो धड़कना बंद करने को है

साँसें अक्सर घुटने लगती हैं
मगर मेघा जागती है

फिर से ख़ुद को सँवारती है!