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मौत का दूसरा नाम | शाही शायरी
maut ka dusra nam

नज़्म

मौत का दूसरा नाम

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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उस को अल्बम दिखाते हुए
मैं बतलाया

ये देखिए ये मेरा दोस्त है
आज कल ग़ालिबन केन्या में

रबर की किसी फ़र्म में ऊँचे ओहदे पे है
उस ने चेहरे को लम्बा बना कर कहा

मैं उसे जानता हूँ
कई बार दो-चार पैग उस के हमराह भी पी चुका हूँ

ये छे साल पहले मुझे केन्या में मिला था
मगर उस मुलाक़ात के दूसरे ही बरस

रेल के हादसे में ये मारा गया था!
फ़ज़ा दफ़अतन दर्द से भर गई

समझ में न आता था मैं उस की ढारस बंधाऊँ
कि ख़ुद चंद तस्कीन के लफ़्ज़ चाहूँ

तो ऐसा भी होता है
ये शख़्स जो मेरे अल्बम के इस काले पन्ने के अल्बम पे बैठा हुआ मुस्कुराता है

आज तक मेरे नज़दीक ज़िंदा था ये
और मेरे तईं दो घड़ी पेश-तर ही मरा है

तो क्या मौत का दूसरा नाम है आगही!