अजीब लम्हा है
मौत का भी
न ख़ौफ़ साथी
न आस हमदम
अजीब शय है ये आदमी भी
जो मौत के डर से काँपता है
जो आस की डोर थामता है
उसे ख़बर है कि मौत क्या है
मगर वो फिर भी
फ़सील-ए-बीम-ओ-रजा का क़ैदी
ख़ुद अपनी करनी से भागता है
उसे ख़बर है कि मौत जीने का आसरा है
उसे ख़बर है
अजीब लम्हा है मौत का भी
न आस हमदम
न ख़ौफ़ साथी

नज़्म
मौत
फ़ारूक़ नाज़की