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मौसम-ए-सरमा की बारिश का ये पहला रोज़ है | शाही शायरी
mausam-e-sarma ki barish ka ye pahla roz hai

नज़्म

मौसम-ए-सरमा की बारिश का ये पहला रोज़ है

मुनीर नियाज़ी

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मौसम-ए-सरमा की बारिश का ये पहला रोज़ है
धुँद है अतराफ़ में सूरज के ख़्वाब-ए-गर्म पर

मैं कि जो महसूर हूँ आराम-ए-हुस्न-ए-यार में
इक हिफ़ाज़त सी है मुझ को जिस्म की महकार में

याद और मौजूद दोनों की हक़ीक़त इस में है
ग़म की ताक़त को ग़लत करने की हिम्मत इस में है

सेहर इतने हैं जमाल-ए-मेहरबान-ए-यार में
जितने इस सरमा की बारिश के हसीं असरार में