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मौलवियों का शग़्ल-ए-तकफ़ीर | शाही शायरी
maulwiyon ka shaghl-e-takfir

नज़्म

मौलवियों का शग़्ल-ए-तकफ़ीर

शिबली नोमानी

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इक मौलवी साहब से कहा मैं ने कि क्या आप
कुछ हालत-ए-यूरोप से ख़बर-दार नहीं हैं

आमादा-ए-इस्लाम हैं लंदन में हज़ारों
हर चंद अभी माइल-ए-इज़हार नहीं हैं

तक़लीद के फंदों से हुए जाते हैं आज़ाद
वो लोग भी जो दाख़िल-ए-इसरार नहीं हैं

जो नाम से इस्लाम के हो जाते हैं बरहम
उन में भी तअ'स्सुब के वो आसार नहीं हैं

अफ़्सोस मगर ये है कि वाइ'ज़ नहीं पैदा
या हैं तो ब-क़ौल आप के दीं-दार नहीं हैं

क्या आप के ज़ुमरे में किसी को नहीं ये दर्द
क्या आप भी उस के लिए तय्यार नहीं हैं

झल्ला के कहा ये कि ये क्या सू-ए-अदब है
कहते हो वो बातें जो सज़ा-वार नहीं हैं

करते हैं शब-ओ-रोज़ मुसलमानों की तकफ़ीर
बैठे हुए कुछ हम भी तो बे-कार नहीं हैं