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मौज-ए-दरिया | शाही शायरी
mauj-e-dariya

नज़्म

मौज-ए-दरिया

तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद

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ऐ हसीं साहिल मगर सोता है तू
तेरे हुस्न-ए-बे-ख़बर पर मेरी बेदारी निसार

मेरे क़तरों की जबीं
मुज़्तरिब सज्दों की दुनिया-ए-नियाज़

आस्ताँ नाज़ पर ज़ौक़-ए-इबादत का हुजूम
देख लर्ज़ां साँस

तेरी दीद को आती हूँ मैं
गाती हुई रोती हुई

और तू
इज़्तिरार-ए-फ़ितरत-ए-सीमाब का रंग-ए-अदा

तेरी इस शान-ए-तग़ाफ़ुल पर फ़िदा
सोता है तू

दर्द-ए-उल्फ़त की असीर
तेरी रेतों को अगर मैं बोसा दूँ

है यही इक आरज़ू
एक जुम्बिश इक निगाह

इक सरसराहट एक आह
ऐ मेरे दिल की देवता

मेरे आईने से मसहूर-ए-जमाल
तमतमा उठते हैं तारे

ग़म से हो जाते हैं दम-भर के लिए
मुनअ'किस है मेरे दामन में फ़रोग़-ए-माहताब

ख़ोशा-ए-पर्वीं कि है शादाब-ए-ख़ून-ए-आफ़्ताब
पानियों में लहलहाता है अजब अंदाज़ से

हुस्न-ए-ऐमन की बहार
याद है चश्म-ए-कलीम

मेरे दिल के देवता
सोने को हूँ

एक जुम्बिश इक निगाह
इक सरसराहट एक आह

ऐ मेरे दिल के देवता