कब कहाँ से चली थी पता नहीं
जन्नत ने ठुकराया
कि आदम ने पुकारा
चारों ओर घना जंगल
हर शाख़ हाथ बढ़ाते ही
ख़ुद में सिमट जाती थी
जाने कब बे-सत्र हुई
किस ने शर्म-गाह की लाज रखी
पाँव के नीचे अन-गिनत राहें
बे-हिसाब नशेब ओ फ़राज़
दोनों तरफ़ सवाल ओ जवाब की अटूट ख़्वाहिशें
इल्ज़ामात के तबादले की तैयारियाँ
बरसहा-बरस की खोज का बस एक ही अंजाम
फ़ाएला मफ़ऊल
क़ुदरत फ़ितरत
इसबात नफ़ी
नज़्म
मर्द---औरत
शहनाज़ नबी