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मक़्तल की ईद-ए-क़ुर्बां | शाही शायरी
maqtal ki id-e-qurban

नज़्म

मक़्तल की ईद-ए-क़ुर्बां

खुर्शीद अकबर

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कितने आदाब से मक़्तल को सजाया गया है
फिर तिरी बज़्म से ज़िंदों को उठाया गया है

सच किसी झूट की तख़्लीक़ नहीं कर सकता
जाने क्या है जो सलीक़े से छुपाया गया है

इस से बढ़ कर नहीं हो सकती फ़ना की तस्वीर
ऐसी हिकमत से खिलौने को बनाया गया है

ईद-ए-क़ुर्बां से मुक़द्दस नहीं कोई तक़रीब
इस तरह भूला सबक़ याद दिलाया गया है

इस तरह ख़्वाब से मिलती नहीं कोई ता'बीर
जैसे सहरा में समुंदर को बुलाया गया है

जाने ये किस ने बनाई है क़यामत की शबीह
सिर्फ़ इल्ज़ाम मुसव्विर पे लगाया गया है

और पुख़्ता हुई जन्नत की बशारत 'ख़ुर्शीद'
जिस तरह मिट्टी में मिट्टी को मिलाया गया है