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मंसूर-हल्लाज | शाही शायरी
mansur-hallaj

नज़्म

मंसूर-हल्लाज

क़मर जमील

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मेरी आँखें मेरी जान
तेरा इबादत-ख़ाना

और अपने लिए इक नार-ए-जहीम
मेरा दिल हिरनों के लिए

मैदान-ए-अज़ीम
और अपने लिए इक ख़ाना-ए-बीम

देख ज़रा हल्लाज का रक़्स
जिस ने अपनी मिट्टी

अपना ख़ून
न समझा अपना ख़ून

जिस के लिए लाया है कोई
एक विसाल-ए-दवाम

एक चराग़-ए-मुबीन