EN اردو
मेजर-इसहाक़ की याद में | शाही शायरी
major-ishaq ki yaad mein

नज़्म

मेजर-इसहाक़ की याद में

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

;

लो तुम भी गए हम ने तो समझा था कि तुम ने
बाँधा था कोई यारों से पैमान-ए-वफ़ा और

ये अहद कि ता-उम्र रवाँ साथ रहोगे
रस्ते में बिछड़ जाएँगे जब अहल-ए-सफ़ा और

हम समझे थे सय्याद का तरकश हुआ ख़ाली
बाक़ी था मगर उस में अभी तीर-ए-क़ज़ा और

हर ख़ार रह-ए-दश्त-ए-वतन का है सवाली
कब देखिए आता है कोई आबला-पा और

आने में तअम्मुल था अगर रोज़-ए-जज़ा को
अच्छा था ठहर जाते अगर तुम भी ज़रा और