फ़िराक़ सुब्हों की बुझती किरनें 
विसाल शामों की जलती शमएँ 
ज़वाल ज़रदाब ख़ाल-ओ-ख़द से अटे ज़माने 
ये हाँफती धूप काँपती चाँदनी से चेहरे 
हैं मेरे एहसास का असासा 
बहार के बे-कनार मौसम में खिलने वाले 
तमाम फूलों से फूटते रंग 
वहशतों में घिरे 
लबों के खुले दरीचों से बहने वाले हुरूफ़ मेरी निशानियाँ हैं
        नज़्म
मैं सोचता हूँ
मोहसिन नक़वी

