मैं ने रात से पूछा
''मेरे घर से चोरी हो जाने वाला ख़्वाब
तुम्हारे पास तो नहीं
मेरे हम-साए के बच्चों का ख़्वाब
घरों में बैठी जवाँ लड़कियों के ख़्वाब
शहर से हिजरत कर जाने वाले सारे ख़्वाब
तुम्हारे पास तो नहीं''?
रात मेरी आँखों में झाँक कर बोली
''इतने सारे ख़्वाबों का चोरी हो जाना
और शोर न मचना
इतने सारे ख़्वाबों का क़त्ल हो जाना
और सुराग़ न चलना
इतनी सारी लाशों का दरिया में बहा दिया जाना
और पानी का रंग न बदलना
कैसे मुमकिन है
तुम्हारी मर्ज़ी के बग़ैर
तुम्हारी शिरकत के बगै़र''
फिर वो गोद में उठाया हुआ चाँद
मेरी तरफ़ बढ़ा कर बोली:
''इस के सर पर हाथ रखो
और क़सम खाओ
अपनी बे-गुनाही की
अपनी मासूमियत की''
और मैं उस का मुँह तकता रह गया
नज़्म
मैं ने रात से पूछा
जावेद शाहीन