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मैं ने कुछ नहीं कहा | शाही शायरी
maine kuchh nahin kaha

नज़्म

मैं ने कुछ नहीं कहा

महबूब ख़िज़ां

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रात उस को ख़्वाब में देख कर
मैं ने कुछ नहीं कहा

चार साल की थकन जवाँ हुई
तिश्नगी बढ़ के बे-कराँ हुई

हाँ मगर जब आँसुओं की नर्म गर्म ताज़गी
आस-पास दिलकशी बिखर गई

और एक साया सा सिरहाने आ के थम गया
मैं ने ये कहा कि ऐ मिरे ख़ुदा

तू बड़ा रहीम है
उस का दिल दो नीम है

उस के रंग उस के हुस्न को निखार दे
उस के दिल का बोझ उतार दे

तू उसे सुकून दे मुझे जुनून दे
उस के दुख उस के दर्द छीन ले

उस के रोग मुझ को दे
मैं गुनाहगार हूँ

रात उस को ख़्वाब में देख कर
चार साल जैसे फिर उसी तरह गुज़र गए

चार साल किस तरह गुज़र गए
दिल ये सोचता रहा

मैं ने कुछ नहीं कहा