मैं भी दिल के बहलाने को क्या क्या स्वाँग रचाता हूँ
सायों के झुरमुट में बैठा सुख की सेज सजाता हूँ
बुझते जलते दीपक से सपनों के चाँद बनाता हूँ
आप ही काली आँखें बन कर अपने सामने आता हूँ
आप ही दुख का भेस बदल कर उन को ढूँडने जाता हूँ
नज़्म
मैं
मुनीर नियाज़ी