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मैं | शाही शायरी
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नज़्म

मैं

ख़दीजा ख़ान

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तेरी गुफ़्तुगू में
एक जुस्तुजू है

जो मेरे रू-ब-रू है
मेरा हू-ब-हू है

मेरा मैं
और तेरा मैं

दर-अस्ल यही तो
दोनों का अदू है

चलो इस मैं का
फ़ासला मिटा दें

मगर
मैं की इस अना में क़ैद

हमारे वजूद को
ये फ़ैसला

मंज़ूर कब है