मैं इंतिज़ार करूँगी
उस वक़्त का
जब किसी जंग में मोहब्बत जुदा न होगी
जब मोहब्बत का दायरा ला-महदूद हो जाएगा
जब मोहब्बत
जिस्म की मुहताज
नहीं रहेगी
जब तुम मुझे
अपना इस्तिआ'रा बना दोगे
और मैं ख़ुद को तुम्हारी तश्बीह बना लूँगी

नज़्म
मैं इंतिज़ार करूँगी
शीरीं अहमद