इक अलबेली पगडंडी है
उफ़्तां ख़ेज़ाँ गिरती पड़ती नदी किनारे उतरी है
नदी किनारे बाहें खोले इक अलबेला पेड़ खड़ा है
पेड़ ने रस्ता रोक लिया है
पगडंडी हैरान खड़ी है
जिस्म चुराए आँख झुकाए
दाएँ बाएँ देख रही है
जाने कब से बाहें खोले रस्ता रोके पेड़ खड़ा है
जाने कब से
जिस्म चुराए आँख झुकाए पगडंडी हैरान खड़ी है

नज़्म
मैं और तू
वज़ीर आग़ा