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मैं और मेरी तन्हाई | शाही शायरी
main aur meri tanhai

नज़्म

मैं और मेरी तन्हाई

अंजुम सलीमी

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हम समुंदर से मिलने ज़रा देर से पहुँचे
रात समुंदर से ज़्यादा गहरी हो रही थी

हम नंगे पाँव साहिल के साथ
बहुत दूर तक चले

दिनों के बाद सरशारी ने अपना चेहरा दिखाया था
और हमारी भूली हुई धुन गुनगुनाई थी

समुंदर हमारी ख़ामोशी में डूबने ही वाला था
जब हमारा गीत पतवार हुआ

अजनबी क़दमों के निशान चुनते हुए
ख़याल आया

चहल-कदमी करते हुए वो दो साए क्या हुए
ये लहरें जिन के पाँव चुरा लाई हैं

तभी हम ने अपने जूतों में झाँक कर देखा
साहिल अभी पूरी तरह नहीं फिसला था

हम ने सोचा
समुंदर को अब सो जाना चाहिए

रात की ख़ुनकी हमारी रगों में उतर चुकी थी
जब हम वापसी के लिए मुड़े

समुंदर बड़ी गर्म-जोशी के साथ हमें रुख़्सत करने आया
ग़ुनूदा चाँद रौशन हुआ

और हमें घर तक छोड़ने की ज़िद की
हम ने दबे-पाँव ऊँघते दरवाज़े पर दस्तक दी

जहाँ उदासी देर से हमारा इंतिज़ार कर रही थी!