मैं अजब आदमी हूँ
राएगानी के तसलसुल ने मुझे तोड़ दिया
मेरी पूँजी मिरे क़िर्तास ओ क़लम
कुछ किताबें पए-तस्कीन-ए-जुनूँ
कौन तालिब है भला माया-ए-बे-माया का
कोई जागीर नहीं
ज़िंदगी शेर के मेले में गँवा दी मैं ने
इस पे नाज़ाँ था कि हर लफ़्ज़ मिरे
हल्क़ा-ए-एहसास में है
इस पे फ़ाख़िर था कि हैं ख़्वाब
मिरे कीसे में
मैं ने क्या क्या न फ़न-ए-शेर की आराइश की
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ महल
हर्फ़-दर-हर्फ़ ख़याल
सत्र-दर-सत्र जुनूँ
मैं अजब आदमी हूँ
ज़िंदगी शेर के मेले में गँवा दी मैं ने
नज़्म
मैं अजब आदमी हूँ
अख़्तर उस्मान