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मैं अच्छा फ़नकार नहीं | शाही शायरी
main achchha fankar nahin

नज़्म

मैं अच्छा फ़नकार नहीं

ज़ाहिद इमरोज़

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परिंदे मुझ से दाना हैं
अपनी मासूमियत ज़िंदा रखने के लिए

हिजरत कर जाते हैं
लोमड़ियाँ अपना दुश्मन पहचान लेती हैं

भेड़ें अपनी ऊन से ख़्वाब बुनती रहती हैं
लोग अपने मालिकों की लानत समेट कर भी

उन के क़दम मापते रहते हैं
जैसे भी हो

ज़िंदा रहना एक फ़न है
ज़िंदगी के खेल में अब तक

मैं इज़ाफ़ी किरदार ही रहा हूँ
जिसे कभी भी खेल-बदर किया जा सकता है