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मैं आ रहा हूँ | शाही शायरी
main aa raha hun

नज़्म

मैं आ रहा हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

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मैं जानता हूँ
ये रात को चुपके चुपके ख़्वाबों में

यूँ तिरा बार बार आना
वो सहमे सहमे हुए से रुकना

वो बे-कसी में क़दम उठाना
वो हसरत-ए-गुफ़्तुगू में तेरे

ख़मोश होंटों का तिलमिलाना
समझ गया हूँ

कि मुझ से मिलने की आरज़ू
तुझ को कैसे बे-ताब कर रही है

मगर मिरी जान!
तू ऐसी मंज़िल पे जा रही है

जहाँ से पीछे को
लौट आने का कोई इम्कान ही नहीं है

तो फिर क्या होगा
जहाँ ये बे-रोज़-ओ-शब के इतने

तवील लम्हे गुज़र गए हैं
कुछ और दिल को ज़रा सँभालो

कुछ और अभी इंतिज़ार कर लो
मैं आ रहा हूँ

मैं आ रहा हूँ