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महीने के अख़ीर दिनों में | शाही शायरी
mahine ke aKHir dinon mein

नज़्म

महीने के अख़ीर दिनों में

सिदरा सहर इमरान

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घर में दाख़िल होते ही
हम ख़ुद को आवाज़ें देने लगते हैं

और कपड़ों से भरा शॉपिंग बैग
फेंक देते हैं बेड के नीचे

रखते हैं अपने जूते सोफ़े पर
और अलमारी के दराज़ से कच्चे अमरूद निकाल कर

बेड-शीट से रगड़ते हैं
और कतरने लगते हैं चार दिन पुराने बिस्कुट

जब भी नज़र पड़ती है आइने पे
ख़ुद को गालियाँ देते हैं

टीवी से टों टों की आवाज़ आने पर
रेमोट के सात टुकड़े कर के

बिल्ली के आगे डाल देते हैं
क्रेडिट ख़त्म हो जाने पर

सेल-फोन पे शीरीं लहजे वाली दोशीज़ा को
खरी खरी सुनाते हैं

और फ्रीज़ के निचले दरवाज़े को ज़ोर से बंद कर के
ख़ाली ओवन में सो जाते हैं