मेरी महबूबा
उन महबूबाओं में से नहीं
जो किसी ज़ालिम रेलवे इंजन की तरह
कमज़ोर पुलों पर से
पूरी रफ़्तार के साथ गुज़रती हैं
या सड़क बनाने वाले रोलर की तरह
हर चीज़ अपनी मोहब्बत के तारकोल में
पिघलाती और जमाती चली जाती हैं
और न ही मेरी महबूबा
उन महबूबाओं में से है
जो अपने आशिक़ों की याद में
किसी जज़ीरे पर कोई लाइट-हाऊस
या सफ़ेदे के दरख़्तों में घिरा
कोई चर्च ता'मीर करवाती हैं
मेरी महबूबा तो है
ग्रेनाइट का एक पहाड़
जिस के दामन में फूल नहीं रखे जा सकते
और जिस के सामने कोई आँसू नहीं बहा सकता
मेरी महबूबा तो है
ताँबे की एक कान
जब वो सोती है
तो इस के घर की दीवारें
बाहर का फ़र्श
और घर के सामने लगा हुआ फ़व्वारा
सुर्ख़ हो जाता है
नज़्म
महबूबा
ज़ीशान साहिल