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महबूबा और मौत | शाही शायरी
mahbuba aur maut

नज़्म

महबूबा और मौत

अख़लाक़ अहमद आहन

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महबूबा और मौत में इक मुमासलत है
कि मुझे दोनों से मोहब्बत है

ऐ मौत क्या बताऊँ कि
तेरे जैसा कौन है

कि जिस से मुझ को प्यार है
कि उस पे सब निसार है

मैं चाहता हूँ उस को भी
तेरी तरह तेरी तरह

हाँ वो भी तेरे जैसी है
मैं ढूँढता हूँ दोनों को

ख़लाओं में फ़ज़ाओं में
ऐ मौत अब कहाँ है तू

किधर मैं ढूँढता फिरूँ
कभी क़रीब आए तो

कभी हाँ मुस्कुराए तो
मगर न समझे मुझ को तो

न ए'तिबार मुझ पे हो
तो बात माने औरों की

तबीब की हकीम की
कहीं जो ग़ैर सुन ले तो

सुने न मेरी बात तो
अजीब बात है भी ये

लगाओ ना गले कभी
न दे मुझे तो प्यार ही

ये कैसी बेबसी मिरी
न तो मिले न प्रीत ही

ये दोनों एक जैसी हैं
मुझे समझती ही नहीं