एक ख़ुश्बू सी बसी रहती है साँसों में मिरे
हुस्न का ध्यान भी ख़ुद हुस्न के मानिंद हसीं
पास हो तुम तो ये क़ुदरत है मोहब्बत जागे
दूर होने पे भी एहसास का रहना है यक़ीं
लम्हा हर साथ में लाता है हज़ारों दुनिया
बूँद की कोख में ज्यूँ इन्द्र-धनुष रहता है
कितने भी गहरे अँधेरे हों तुम्हारा जादू
रौशनी बन के हर इक रग में मेरी बहता है
हुस्न वो शय है कि जिस की कोई सरहद ही नहीं
वक़्त बे-मअ'नी है और फ़ासला इक धोका है
घाव रहता है हरा टीस के पहनावे में
ख़्वाब और याद का एक एक नफ़स सच्चा है
नज़्म
महकती हुई तन्हाइयाँ
अशोक लाल