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मदह | शाही शायरी
madh

नज़्म

मदह

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

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(1)
कस तरह बयाँ हो तिरा पैराया-ए-तक़रीर

गोया सर-ए-बातिल पे चमकने लगी शमशीर
वो ज़ोर है इक लफ़्ज़ इधर नुत्क़ से निकला

वाँ सीना-ए-अग़्यार में पैवस्त हुए तीर
गर्मी भी है ठंडक भी रवानी भी सकूँ भी

तासीर का क्या कहिए है तासीर ही तासीर
एजाज़ उसी का है कि अर्बाब-ए-सितम की

अब तक कोई अंजाम को पहुँची नहीं तदबीर
अतराफ़-ए-वतन में हुआ हक़ बात का शोहरा

हर एक जगह मक्र-ओ-रिया की हुई तश्हीर
रौशन हुए उम्मीद से रुख़ अहल-ए-वफ़ा के

पेशानी-ए-आदा पे सियाही हुई तहरीर
(2)

हुर्रियत-ए-आदम की रह-ए-सख़्त के रह-गीर
ख़ातिर में नहीं लाते ख़याल-ए-दम-ए-ताज़ीर

कुछ नंग नहीं रंज-ए-असीरी कि पुराना
मर्दान-ए-सफ़ा-केश से है रिशता-ए-ज़ंजीर

कब दबदबा-ए-जब्र से दबते हैं कि जिन के
ईमान ओ यक़ीं दिल में किए रहते हैं तनवीर

मालूम है उन को कि रिहा होगी कसी दिन
ज़ालिम के गिराँ हाथ से मज़लूम की तक़दीर

आख़िर को सर-अफ़राज़ हुआ करते हैं अहरार
आख़िर को गिरा करती है हर जौर की तामीर

हर दौर में सर होते हैं क़स्र-ए-जम-ओ-दारा
हर अहद में दीवार-ए-सितम होती है तस्ख़ीर

हर दौर में मलऊन शक़ावत है 'शिमर' की
हर अहद में मसऊद है क़ुर्बानी-ए-शब्बीर

(2)
करता है क़लम अपने लब ओ नुत्क़ की ततहीर

पहुँची है सर-ए-हरफ़-ए-दुआ अब मिरी तहरीर
हर काम में बरकत हो हर इक क़ौल में क़ुव्वत

हर गाम पे हो मंज़िल-ए-मक़्सूद क़दम-गीर
हर लहज़ा तिरा ताले-ए-इक़बाल सिवा हो

हर लहज़ा मदद-गार हो तदबीर की तक़दीर
हर बात हो मक़्बूल, हर इक बोल हो बाला

कुछ और भी रौनक़ में बढ़े शोल-ए-तक़रीर
हर दिन हो तिरा लुत्फ़-ए-ज़बाँ और ज़ियादा

अल्लाह करे ज़ोर-ए-बयाँ और ज़ियादा