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मचा कोहराम क्यूँ है | शाही शायरी
macha kohram kyun hai

नज़्म

मचा कोहराम क्यूँ है

जाफ़र साहनी

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मचा कोहराम क्यूँ है
घर बदलने पर

अभी भी हल्के काले
शीशे वाली

आँख पर ऐनक लगा कर
हल्क़ा-ए-याराँ में वो अक्सर

चहल-क़दमी को आता है
सुनाता है ग़ज़ल अपनी

कभी तारों की झुरमुट में
कभी रस्ते में शबनम के

कभी ख़ुशबू लपेटे जिस्म पर
दिल-कश फ़ज़ाओं में

कभी बे-हद चमकती धूप के
पीपल की छाँव में

ज़रा सा
चश्म-ए-बातिन को

मुनव्वर कर के तो देखो
लिए दरिया को हाथों में

बहुत शादाँ
बहुत फ़रहाँ

नज़र आता है मसनद पर
ग़ज़ल की वो