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माज़ी | शाही शायरी
mazi

नज़्म

माज़ी

ख़दीजा ख़ान

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बहुत ख़ूबसूरत
ख़ुशनुमा

हँसते मुस्कुराते
गाते गुनगुनाते

वो धड़कते लम्हे
जीते जागते लम्हे

यक-ब-यक
एक दिन

हो गए रू-ब-रू
पुरानी किताब के

पन्ने में दबे हुए
लेकिन ये क्या

ताज़ा गुलाबों से भी ज़ियादा
महक रहे थे ये

इन सूखे हुए फूलों से
आ रही थी

गुज़रे हुए पलों की
ताज़ा ख़ुश्बू