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मासूमियत | शाही शायरी
masumiyat

नज़्म

मासूमियत

सईदुद्दीन

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हमारे यहाँ बच्चे को
जो अभी पूरी तरह खड़ा होना भी न सीखा हो

पिस्तौल हाथ में दे दी जाती है
दो चार बार उसे ज़मीन पर गिरा कर

उसे पिस्तौल सँभालना
और फिर हात को ज़रा सी जुम्बिश से

उसे उँगलियों के दरमियान
फिर की की तरह भी आ जाता है

लड़कपन फलांगने से पहले
उसे दो एक आदमी गिराना होते हैं

बड़े होने पर उस के हाथों में
असली बंदूक़

या मशीन-गन थमा दी जाती है
अब उस से तवक़्क़ो' की जाती है

कि वो दो एक अफ़राद को गिराने पर इक्तिफ़ा नहीं करेगा
बल्कि कई इंसानों के ख़ून से

अपने हाथ रंगेगा
मुझे ए'तिराफ़ है

हमारे यहाँ
सब लोग ऐसा नहीं कर पाते

कुछ तो खिलौना पिस्तौल ही से
अपनी ना-पुख़्ता उम्र में

ख़ुद को हलाक कर लेते हैं
कुछ ऐसे भी हैं

जो सच-मुच की पिस्तौल को भी
खिलौना ही समझते हैं

इस लिए उन्हें
इस लिए लाइसेंस कि ज़रूरत भी महसूस नहीं होती

जिन्हें वो हलाक करते हैं
अक्सर उन में उस के क़रीबी दोस्त

या अज़ीज़-ओ-अक़ारिब होते हैं
उन्हें हलाक करने के बाद

ये देख कर वो हैरान रह जाते हैं
कि उन के हाथों में

सच-मुच की पिस्तौल आ कैसे गई
और वो कब से

किसी के निशाने पर थे