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माँ | शाही शायरी
man

नज़्म

माँ

फ़ातिमा हसन

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पहली बार में कब तकिए पर
सर को रख कर सोई थी

उन के बदन को ढूँडा था और रोई थी
दो हाथों ने भींच लिया था

गर्म आग़ोश की राहत में
कैसी गहरी नींद मुझे तब आई थी

कब दूर हुई थी पहली बार
अपने पैरों पर चल कर

बिस्तर से अलग फिर घर से अलग
इक लम्बे सफ़र पर निकली थी

अपनी उँगली को थामे
धीरे धीरे दूर हुई कब

नरम बदन की गर्मी से
उस मीठी नींद की राहत से

अब सोचती हूँ और रोती हूँ